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१५७ ॥ श्री लाला हरि सहाय जी ॥


पद:-

हरि मोहिं अबकी बेर उबारो।

माया जाल में हम हैं भूले आप न मोहिं बिसारो।

अधम उधारन नाम आप का सुर मुनि वेद उचारो।

करुणा सिन्धु आपु सम को है सबै युगन निस्तारो।

ऐसे महाराज को छोड़ि को जांचो काको द्वारो।५।

सतगुरु देहु मिलाय नाथ अब कटै पाप को भारो।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख तोहिं निहारो।

अन्त समय तव धाम को आय के बैठों जग से न्यारो।८।