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४८३ ॥ श्री रेवती जी ॥


पद:-

रेवती की बिनय सब जन सुनो तन मन लगाय कै।

करो सुमिरन श्याम राधे का सदा हर्षाय कै।

शान्ति बैठि एकान्त में सूरति को शब्द लगाय कै।

धुनि ध्यान लय परकाश हो हर दम मगन सुख पाय कै।

झाँकी युगुल सन्मुख रहै नैनो में नैन भिड़ाय कै।५।

सुर मुनि कहैं हरि यश सुनो नित प्रेम प्रीति बढ़ाय कै।

अन्त में चढ़ि कै सिंहासन चलो हरि पुर धाय कै।

सतगुरु बिना नहिं मिलै यह पद कहौं सत्य सुनाय कै।८।