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३१४ ॥ श्री बजरंग दास जी ॥


दोहा:-

योगी कोविद कवि वही, जंगम वही नरेश।

मुल्ला आदम गदा वह, पीर वही दरवेश।१।

शिष्य वही सतगुरु वही, धरयौ वही सब भेष।

वही करत दीदार है, वही हर जगह पेश।२।

कहैं दास बजरंग यह, हरि को भजै हमेश।

तन छूटै चढ़ि यान में, पहुँचि जाय हरि देश।३।