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१०० ॥ श्री कीरति जी ॥


दोहा:-

शक्ति में शक्तीमान हैं, शक्तिमान में शक्ति।

मुक्ति के अन्तर भक्ति है, भक्ति के अन्तर मुक्ति।१।

कीरति जाने जौन कोइ, नाम जपन की युक्ति।

ता के सन्मुख हर समय, शक्तिमान औ शक्ति।२।