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९२ ॥ श्री मन्दालसा जी ॥


दोहा:-

सकाम भक्ति जे जन करैं ते जग चक्कर खाहिं।

भक्ति करहिं निष्काम जे ते नहि आवहिं जाहिं॥


चौपाई:-

बचन हमार सत्य सुनि लीजै। यही बात की सिक्षा दीजै।

और ज्ञान जग सार न कोई। मुक्ति भक्ति याही से होई।

मार्ग प्रवृत्ति देय छोड़वाई। फेरि निबृत्ति में देंय लगाई।

सोई सतगुरु जक्त कहावै। सुरति शब्द को भेद बतावै।

हरदम नाम कि धुनि हो जारी। सन्मुख राम औ जनक दुलारी।५।

जियतै में जो यहँ सुख पावै। तन छूटै सो हरि ढिग जावै।

राम रकार राम को नामा। शंकर भजत जाहि बसुयामा।

लोमश शेष और चतुरानन। गणपति शारद जपैं षड़ानन।

काग भुशुण्डि गरुड़ हनुमन्ता। नारद शुक सनकादि कहन्ता।

श्री वशिष्ठ मुनि जपैं हमेशा। नवयोगेश्वर चन्द्र दिनेशा।१०।


दोहा:-

मन्दालसा कहैं हमैं, श्री गुरु नारद आय।

राम नाम के जाप का दीन्हउ भेद बताय।१।