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८५ ॥ श्री पूरनमल जी ॥


दोहा:-

निश्चय भक्ती प्रेम से चारि धाम करि लेय।

यहां रहे निर्भय सदा वहां महा सुख लेय।१।

सत्य बचन धारन करै झूठसे नाता तोड़।

पूरन मल यह कहत हैं मृत्यु को देय मरोड़।२।