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३० ॥ श्री भृगु जी ॥


दोहा:-

षट् दल कमल में चक्र जो, तहँ पर जा को थान।

चक्र एक है अष्ट दल, कमल में पा को जान।१।

था है बारह दल कमल, एक चक्र तहँ मान।

जा पा था के भेद को, जानहिं पुरुष महान।२।


पद:-

प्राणायाम व जड़ समाधि षट् मुद्रा हों पूरब से।१।

पांच प्राण मिलि एक होंय, चक्कर करि जांय पच्छिम से।२।

पहूँचि जाँय साकेत पुरी को, सीधे तब उत्तर से।३।

असुर योगिनी चौंसठि, बावन बीर मरैं दक्षिण से।४।


पद:-

ब्रह्मा का बरदान प्रथम हो, दूजे विष्णु को जानो।१।

तीजे शिव जी संग में जावैं, मिलि जाय ठीक ठिकानो।२।

चारि रूप से ब्रह्मा तन में, छा से शिव को जानो।३।

चारि से विष्णु वास करत हैं, साधन करिकै मानो।४।


दोहा:-

जा के ढिग से जापकर पा ढिग पहुँचै जाय।

पा के पास से चलै फिरि, था ढिग पहुँचै धाय।१।

था के संग में जाय तब, सत्य लोक दरशाय।

थमि जावै सो वहीं पर, राम रूप बनि जाय।२।