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१०२ ॥ श्री बाबा माधव राम जी ॥


दोहा:-

नाम रूप दोउ एक हैं, सदा अखण्ड अनादि ।

तन मन से सूरति लगै, छूटि जाय वकवादि ॥१॥

मगन रहै हर दम वही, जो पावै कछु जानि ।

मूर सजीवन मिल गई, क्या भोजन अरू पानि ॥२॥

बिना गुरु के भेद यह, कौन सकै बतलाय ।

राम कृपा सतगुरु मिलै, आवागमन नसाय ॥३॥