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२७८ ॥ श्री हुसेनी तेली जी ॥

(अपढ़, जगदीशपुर, सीतापुर)

शेर:-

खोदा से प्रेम है जिसका वही प्यारा खोदा का है।

वही तन छोड़ि निज पुर ले वही ढारा खोदा का है॥

चाकरी में जो नहिं चूकै वही बन्दा खुदा का है।

वही इस खलक से न्यारा वही ज़िन्दा खोदा का है।२।

 

दोहा:-

तन तुम्हार यह रेल है मन है ड्राइवर जान।

मन को काबू कीजिए तब होवै कल्यान॥

खान पान सन्मान में जाको रहेता प्रेम।

वाको जियते में नरक कैसे होवै छेम।२।