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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६)

अर रर संतौ पढ़ौ कबीर।

सुर मुनि जुग श्रुति कहत हैं भजन करौ मन जीति।

अन्धे कह तब जाय ह्वै ठीक राम से प्रीति।

भला दोनो दिसि बाजै बिजय ढोल।४।