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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

बन्द चारौं तरफ फरिका। जाय जो होंय उस दरिका।४।

ध्यान धुनि नूर लै सरिका। रूप सन्मुख में श्री हरि का।६।

देव मुनि देंय नित खऱिका। कहैं अंधे करैं अरिका।८।

 

पद:-

श्री गीता श्री रामायणजी। मुद मंगल की हैं दायन जी।

सुरमुनि सबके मन भायन जी। नित ने भरे करते गायन जी।

हरि कृपा से बटि गोवायन जी। सब लो कन में जस छापन जी।

धरि ध्यान गपन लखि आपन जी। अंधे कहैं सत्य सुनायन जी।

 

पद:-

सतगुरु शरन सतगुरु बचन सतगुरु चरन में प्रीति हो।

अंधे कहैं जियतै तरा वासे न फिरि अनरीति हो।

सन्मुख लखैं प्रिय श्याम को बाजा बजै क्या गीत हो।

सुर मुनि लिपटि कर भेटते बोलैं भई अब धीति हो।

नागिन जगै चक्कर चलैं फूलैं कमल सब रीति हो।

अमृत पियें तन तजि चलै यह अपने कुल की नीति हो।६।

 

दोहा:-

चुगलन में माहिल बने, भजन में काहिल जान।

अंधे कह वै होयँगे, जम गण के सन्तान॥

 

पद:-

सुमिरन बिना नर तन गये जे खोय खोय खोय।१।

ते सब पड़ैं नरक में रहे रोय रोय रोय।२।

पापों के बीज जग में खूब बोय बोय बोय।३।

अँधे कहैं पछिताने अब क्या होय होय होय।४।

 

पद:-

सतगुरु करो जगत में रहे सोय सोय सोय।१।

चेतौ उठौ भजन करौ मुख धोय धोय धोय।२।

सुर मुनि पिलावैं तुमको मीठा तोय तोय तोय।३।

अन्धे कहैं हरि पास तजो दोय दोय दोय।४।

 

पद:-

मन दिवान जो रहा हमारा।

जाय मेल दुष्टन से कीन्हे हमको चहत निकारा।

छिन छिन पाप करम है करता ऐसा है हत्यारा।

बोलैं तो चट उत्तर देवैं हमरे हैं बहु दारा।

हमको उनकी फिकिर लगी है और कौन दे चारा।५।

 

ऐसी मति मलीन भइ वाकी लीन्हें तेग दुधारा।

अब हम सतगुरु से सिख आवैं राम नाम रंकारा।

अंधे कहैं भागि कहां जैहौ पीटब खोलि केंवारा।८।

 

पद:-

साधक कूदि परै अगिनी में जैसे गिरत पतिंगी है।

अंधे कहैं वही सतगुरु का पूरा हरि का संगी है।

जैसे कीट ले आय बनावत निज स्वरूप में भृंगी है।

कैसा सुन्दर शब्द सुनावत भन भनात जिमि बंगी है।

अपने प्रभु के नाम कि धुनि जो र रंकार अति चंगी है।

हर दम ख्याल रहै जब वा पर करती तब एक रंगी है।६।

 

पद:-

विश्वास करै सतगुरु के बचन तब देख परैं रघुबर सीता।

परकास समाधी ध्यान नाम ह्वै गयो जियति तुरियातीता॥

सुर मुनि नित आवैं हिये लगावैं कहैं भयो अब मम मीता।

बिमल बिमल अनहद धुनि सुनते भांति भांति के संग गीता।

जिन हरि भजन को जान्यो नाहीं जन्म अकारथ है बीता।

अंधे कहैं नर्क में रोवै त्यागि दिहिनि कुल की रीता।६।

 

पद:-

राखौ गर्भ के कर्ज क ख्याल।१।

सतगुरु करि जप भेद जानि के करो इकट्ठा माल।२।

सब श्री हरि को सौंपति जावो होय न बाँका बाल।३।

अंधे कहैं साधकौं सुनि कर जुटिये ठोंकि के ताल।४।

जारी........