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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(११)

चौपाई:-

हरि चरित्र जे पढ़े पढ़ावैं। सुनैं सुनावैं लिखैं लिखावैं॥

अंधे कहते हरि पुर जावैं। बैठि सिंहासन हिय हर्षावैं॥

सुर मुनि सब के दर्शन पावैं। हब्य अनार मिलै नित खावैं॥

कथा सुनैं औ हरि यश गावैं। बारह बर्ष बयस ह्वै जावैं॥

भूषन बसन गरुड़ पहिरावैं। बदलैं सो अन्तर ह्वै जावैं।५।

 

को बरनै देखत बनि आवै। जो जानै सोई सुख पावै॥

जब चाहैं तब घूमन जावैं। झूला झूलैं औ मुस्कियावैं॥

सतगुरु के ढिग सिखैं सिखावैं। तब वाकी जियतै बनि जावै।८।

 

पद:-

सर्गुण ब्रह्म की बिनती वेदन रामायण में कीन्हा जी।

बालमीकि तुलसी भे आकर सब लोकन यश लीन्हा जी।

सत्यं शिवं सुन्दरं हर ने वा पर दस्तखत कीन्हा जी।

सब सुर मुनि वा को नित गावत चारि पदारथ दीन्हा जी।

कितने जीव तरें औ तरिहैं बांध्यो स्वर्ग में जीना जी।

अंधे कहैं अन्त हरि पुर हो सिंहासन आसीना जी।६।

 

पद:-

परा से नाम जपत हैं सतयुग पैशन्ती से त्रेता जी।१।

जपत मध्यमा से हैं द्वापर कलियुग जीह से धेता जी।२।

अजपा जाप बतायो सतगुरु धन्य भक्त जो सेता जी।३।

अंधे कहैं अन्त साकेत में बनि बैठा हरि नेता जी।४।

 

दोहा:-

गुप्फ़ा राम नाम का पाओ अंधे कहैं भरे तब पेट।१।

ना मानो तो भूखे हर दम बैठो चलो चहै रहो लेट।२।

 

पद:-

पितु मातु के पूत सपूत वही जे सतगुरु करि अवधूत हुए।१।

निज कुल की है कुल कानि यही दोनों दिसि ते मजबूत हुए।२।

धुनि नाम प्रकास समाधि लही सिय राम के हर दम सुत हुए।३

अंधे कहैं जब नहीं सुकृत सही चलि नर्क पड़े या भूत हुए।४।

पद:-

सागु आगु मुख पागु बने हरि सुमिरन बिन हाजम का।१।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो सो दोनो दिशि गमका।२।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने चमका।३।

अंधै कहैं शंभु औ हनुमति यही सीख दियो हमका।४।

 

पद:-

चित्र गुप्त औ धर्म राज प्रभु कृपा पात्र इन्साफ़ी।१।

सारे पाप भजन ते नासैं आलस की नहिं माफ़ी।२।

सतगुरु करि सुमिरै निशि बासर पावो तप धन काफ़ी।३।

अंधे कहैं अंत निज पुर हो छूटै गर्भ की हांफी।४।